परजीवी से होने वाली बिमारियाँ
अन्तः परजीवी से होने वाली बिमारियाँ
नेमाटोड या गोल कीड़े: –
- वे दोनों छोरों पर लम्बी, बेलनाकार और पतला होते हैं।
- जुगाली करने वालों में पाए जाने वाले गोल कीड़े हैं: –
- पेट के कीड़े – हेमोंकस, ओस्टरटेजीआ, ट्रीकोस्ट्रॉन्गीलस
- छोटे आंत के कीड़े – निओएस्केरिसया टोक्सोकारा , कूपेरिआ
- बड़ी आंत के कीड़े – ट्रिचोरिस, ओसोफैगोस्टोमम
संचरण : – अंडे या संक्रामक लार्वा का अंतर्ग्रहण
लक्षण: –
- शरीर के वजन कानुकसान
- सूखे और खुरदरे बाल
- खराब विकास दर
- पॉट- बेली
- लगातार दस्त होना
- खून की कमी
- पाइका
उपचार: – उपचार और परामर्श के पशुचिकित्सक की सलाह अवश्य लें
नियंत्रण:-
- प्रभावित पशुओं का अलगाव और उपचार
- पशु शेड की सफाई
- चारा और पानी गोबर से दूषित नहीं होना चाहिए
- युवा और बूढ़े जानवरों को एक साथ न रखें
- रोटेशनल चराई को प्रोत्साहित करना होगा
- डीवॉर्मिंगकिया जाना चाहिए कम से कम एक वर्ष में दो बार (मानसून से पहले और बाद)
- नियमित अंतराल पर झुंड के मल के नमूनों की जांच
सिस्टोड्सया टैपवार्म –
- वे समतल, खंडित या टेप जैसेकीड़े होते हैं । इनकी लंबाई 2 मिमी से 20 मीटर तक होती है।
कारण: –
- जुगाली करने वालों में पाए जाने वाले सामान्य टैपवॉर्म जो मोनीजिया प्रजातियां हैं
- आंत में परिपक्व टैपवार्म पाए जाते हैं
- संचरण: – ओरिबाटिड माइट्स
लक्षण: –
- शरीर के वजन में कमी
- अवरुद्ध विकास
- रुखड़ा शरीर का चमड़ा
- मटके जैसा पेट
- दस्त और कब्ज
- खून की कमी
- मल में टैपवार्म खंडों का उत्सर्जन
- उपचार: – उपचार और परामर्श के पशुचिकित्सक की सलाह अवश्य लें
नियंत्रण:-
- ओरिबाटिड माइट्स नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक का छिड़काव
- सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद दूशित चारे की चराई से बचे
- नियमित रूप से डीवॉर्मिंग करना
- स्वच्छता की स्थिति बनाए रखें
ट्रेमाटोड्स या लीवर फ्लूक्स –
- वे सपाट, पत्ती जैसेकीड़े होते हैं
कारण: –
- फासिओलाहेपेटिक या फासिओला जाइज़ैंटिका
- घोंघे मध्यवर्ती मेजबान हैं
संचरण : – दूषित चरागाह और पीने के पानी के अंतर्ग्रहण के माध्यम से फैलता है
लक्षण: –
- वजन में कमी
- भूख में कमी
- दुर्बलता
- बोतल जबड़ा (ठुड्डी के नीचे सूजन)
- खून की कमी
- क्रोनिक दस्त
- 2- 3 महीने के भीतर मृत्यु
उपचार: – उपचार और परामर्श के पशुचिकित्सक की सलाह अवश्य लें
नियंत्रण:-
- प्रभावित पशुओं का उपचार
- घोंघे का नियंत्रण
- कम झूठ बोलने वाले या दलदली क्षेत्रों जैसेनदी के किनारे, तालाब आदि में चराई से बचें
- साल में दो बारफ्लुकीसाइड्स का उपयोग
बाह्य परजीवी से होने वाली बीमारिआं
बाह्य परजीवी पशुओं के निम्नलिखित समूहों में विभाजित किया जा सकता है: –
जू
टिक
फ्लीस
माइट्स
लक्षण: –
- जलन
- बालों का झड़ना
- बेचैनी
- खून की कमी
- शरीर के वजन में कमी
- दूध और मांस उत्पादन में कमी
- विकास दर में कमी
उपचार: – उपचार और परामर्श के पशुचिकित्सक की सलाह अवश्य लें
नियंत्रण:-
- प्रभावित पशुओं का अलगाव और उपचार
- मवेशियों में कीटनाशक का छिड़काव नियमित अंतराल पर करें
- पशु शेड की दीवार की दरारें बंद करें
- स्वच्छता की स्थिति बनाए रखें
- मवेशी रखने का बथान तथा आस-पास में गन्दगी के कारण चमोकन, जुओं तथा मक्खियों का प्रकोप बढ़ जाता है।
- कोई नया पशु जिसके शरीर में पहले से ही चमोकन या जुएँ लगा रहा हो उसी पशु से भी बथान के अन्य पशुओं में फैलने की सम्भावना होती है।
- चमोकन, जुएँ शरीर के खून चूसती रहती है।
- एक चमोकन एक दिन में औसतन आधा मि.ली. खून चूसती है। एक पशु के शरीर में एक दिन में औसतन 300 से 500 मि. ली. खून चूस लेती है। जिससे पशु कमजोर हो जाता है।
- चमोकन पशु के खून में एक जहर छोड़ती है। जिससे पशुओं में पक्षाघात होने की संभावना रहती है।
लक्षणः
- पशु का कमजोर हो जाना एवं पशु देखने में बदसूरत लगना।
- शरीर का रोआं खड़ा हो जाता है तथा रोआं के अंदर चमोकन चमड़े में चिपका रहता है।
समाधानः
- नीम की पत्ती गर्म पानी में उबालकर एवं सुसुम ठंढा करके लाइफबॉय साबुन से पूरे शरीर को अच्छी तरह धोना चाहिए।
- गोमाक्सीन एवं फिनाईल नियमित रूप से बथान तथा बथान के आस-पास छिड़काना चाहिए।
- बथान तथा बथान के आस-पास में सारी गंदगी को अच्छी तरह साफ करना चाहिए।
- पशुशाला तथा पशुओं को साफ-सुथरा एवं सूखा रखना चाहिए, जिससे परजीवियेां की संक्रामक अवस्था पनप नहीं पाये।
- पशुओं को बाँधने का स्थान साफ-सुथरा, हवादार तथा पर्याप्त रोशनी वाला होना चाहिए, क्योंकि गन्दगी से मच्छर, मक्खी, जूँ आदि पैदा होते हैं।
- पशु आवास के आस-पास गन्दा पानी, घास एवं कूड़ा-करकट को जमा नहीं होने दें।
- पशुशाला के फर्श एवं दीवारें पक्की होनी चाहिए तथा नियमित रूप से (महीने में दो बार) कीटनाशक घोल का दीवार एवं दरारों में छिड़काव करना चाहिए।
- महिना में एक बार सभी मवेशियों को कीटानाशक दवा के घोल (पशुचिकित्सक की सलाह के अनुसार) से पोंछना चाहिए।
- आवास के आस-पास और अन्दर एवं पशु के शरीर पर बाह्यपरजीविनाशक औषधि का समयानुसार पशुचिकित्सक की सलाह के अनुसार छिड़काव या उपयोग करते रहना चाहिए।
- पशुओं को नहलाते समय बाह्यपरजीवियों को हाथ से अलग करके नष्ट कर देना चाहिए।
- पशु के शरीर पर कोई भी घाव होने पर तुरन्त उसका उपचार करना चाहिए।
- चारागाह की समय-समय पर जुताई कर ख्र पतवार में आग लगा देनी चाहिए, इससे किलनी की अवयस्क अवस्था समाप्त हो जाती है।
- पशुओं को चरने के लिए सुबह धूप निकलने के बाद तथा ओस सूखने के बाद ही ले जाना चाहिए एवं सूर्य छिपने से पहले वापस ले आना चाहिए।
- चारागाह को बदलते रहना चाहिए।
- वर्ष में तीन बार उपयक्त कृमिनाशक का प्रयोग (जनवरी/फरवरी, जुलाई/अगस्त एवं अक्टूबर/नवम्बर) करना चाहिए। रोगग्रसित पशुओं के साथ-साथ रोगमुक्त पशु को भी कृमिनाशक दवा देना चाहिए।